Thursday 23 March 2017

सच की नींव | Base of truth

sach ki neev
सच की नींव | Base of truth

एक बार एक राजा के महल में किलकारी गुंजी अर्थात राजा के यहाँ एक लड़का हुआ था । सभी बेहद ही खुश थे, राजा ने भव्य आयोजन रखा था , जहाँ सभी लोग आमंत्रित थे । आमंत्रित लोगो में से राजा के राज घराने के पुरोहित भी शामिल थे, जिन्हें बेहद की ग्यानी माना जाता था । राजा उन्हें बड़े सम्मान से अपने पुत्र के कक्ष में लेकर गए, और पूछा की "हे पुरोहित, मेरे पुत्र को आशीर्वाद दें और बताये की आगे चलकर इसकी किन चीज़ों में रूचि रहेगी" ।

पुरोहित ने शिशु के पाँव देखते ही कहा की "राजन, ये बालक या तो सबसे बड़ा शासक बनेगा या फिर सबसे बड़ा सन्यासी" । राजा शासक के नाम पर तो खुश था , मगर वो अपने पुत्र को सन्यासी बनते नहीं देख सकता था, तो राजा तुरंत पूछ बैठा की "पुरोहित जी, कोई उपाय बताइये, जिससे ये बड़ा होकर सन्यासी ना बनें" ।


पुरोहित ने कहा की इसके दिमाग में सच की नीवं नहीं डलनी चाहिए, राजा के समझ नहीं आया और वो फिर से पूछ बेठा की पुरोहित जी मैं इसका तात्पर्य समझा नहीं | पुरोहित जी बड़ी गहरी बात कह रहे थे, उन्होंने फिर कहा की इस बालक को केवल वही सच बताया जाये जिससे यह शासक बना रहे, इसे वो सच न बताया जाये जो इसे सन्यासी बना दे | राजा समझ गया था की पुरोहित जी किस और इशारा कर रहे है |



समाहरोह खत्म हुआ और राजा ने तुरंत अपने सभी सहकर्मियों, मंत्रियो, सेवकों और अपने सभी परिवार जन को एक सभा के लिए एकत्रित करवाया | सभी चकित थे की राजा ने इतनी शीघ्र सभी को यहाँ एकत्रित क्यों किया है ? तभी राजा सभी से बोल बेठा की "यहाँ मोजूद सभी लोगो को एक बात का ध्यान रखना होगा | मेरा पुत्र अभी किशोर अवस्था में नहीं आया है, वो संसार के अनुभवों से वंचित है मगर जैसे-जैसे वो बड़ा होगा हमें कुछ बातो का ध्यान रखना होगा" |

राजा ने सेवको को आदेश दिए की मेरे पुत्र के सामने कभी झड़े हुए पुष्प नहीं आने चाहिए, बगीचों में जो भी पेड़ पतझड़ का संकेत देने लगे उसे वहां से हटा दिया जाये और बगीचों को हमेशा बिना किसी मुरझाये पेड़ और पुष्पों के रखा जाये | राजा ने फिर से दूसरा आदेश जारी किया की मेरे पुत्र को कभी कोई म्रत्यु की खबर नहीं सुनाई जाएगी और कभी कोई बुजुर्ग उसकी आखो के सामने नहीं जायेगा इसलिए सभी बुजुर्ग लोगो का महल में आना प्रतिबंधित कर दिया गया |


राजा ने वो सभी चीज़े प्रतिबद्ध कर दी जो उसके पुत्र को आघात पंहुचा सके, जो उसके पुत्र को सोचने पर मजबूर कर सके | इसके बाद महल में वही हुआ जैसा राजा ने कहा, मगर ये सब केवल महल तक ही सिमित था | राजा का पुत्र धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था, वो कई बार महल से बहार जाने की जिद भी करता मगर सभी उसे बहला-फुसला कर महल में ही रोक लेते |

मगर एक दिन राजा के पुत्र ने ठान ली को वो बाहर की दुनिया देखना चाहता है और कोई उस वक्त उसे रोक नहीं पाया, क्योकि राजा का पुत्र अब बड़ा हो चूका, था समझदार हो चूका था, तो उसे अनुमति दे दी गई | परन्तु वो नहीं जनता था की आगे उसका किन अनदेखी चीजों से सामना होने वाला है |

मेलें में अपने मित्र के साथ और अपनी बग्गी पर चलते हुए उसे एक बुजुर्ग इंसान दिखाई दिया, वो चोंक गया की संसार में ऐसा भी कोई प्राणी है क्योकि उसने आजतक कभी किसी बुजुर्ग व्यक्ति को देखा ही नहीं था, वो तुरंत अपने मित्र से पूछ बेठा की "ये क्या है ?" मित्र ने कहा "यह एक बुजुर्ग व्यक्ति है", राजा के पुत्र ने फिर पूछा "ये क्या होता है ?", मित्र मुस्कुराने लगा और समझाया की सभी लोग धीरे-धीरे बुजुर्ग हो जाते है ये प्रकर्ति का नियम है | राजा के पुत्र ने फिर सवाल उठाया की "क्या मैं भी बुड्डा हो जाऊंगा ?", मित्र ने कहा "हाँ, तुम भी बुड्डे हो जाओगे |"


यह सुनते ही राजा के पुत्र ने बग्गी रुकवाई और कहने लगा की मुझे शीघ्र घर ले चलो, सभी ने पूछा "क्यों, आप तो भ्रमण करने आये थे, क्या हुआ ?" | मगर राजा के पुत्र का जवाब सुन सभी चकित रह गए, उसने कहा की "मैं अब बुड्डा हो चूका हूँ, मुझे घर जाना है"

बग्गी तुरंत महल की और मोड़ ली गयी मगर रास्ते को कुछ और ही मंजूर था, रास्ते में राजा के पुत्र ने वो सभी दुःख दर्द से भरे लोग देखे जो तकलीफ में थे मगर अंत में आते-आते उसने एक ऐसी चीज़ देखि जिसे देख कर वो स्तब्ध रह गया | वो थी अर्थी, जो एक मरे हुए मनुष्य को ले जा रही थी | उसने फिर अपने मित्र से सवाल किया "ये क्या है ?", मित्र ने कहा "ये अर्थी है, जो मनुष्य के मर जाने के बाद काम आती है", राजा के पुत्र ने फिर सवाल किया की "ये मनुष्य का मरना क्या होता है ?", मित्र ने कहा "एक दिन सभी को मरना है" |


यहीं राजा के रचाए सारे खेल का अंत हो गया, राजा के पुत्र ने बग्गी रुकवा दी | सभी ने पूछा "क्या हुआ ? अब कहाँ जाना है ?", राजा के पुत्र के मुख से शब्द निकले की "अब तो जहाँ ले चलना है ले चलो, मैं तो मर चूका हूँ" |

सभी यह सुनकर स्तभ्द हो उठे क्योकि वो समझ गए थे की वो सच अब सामने आ गया है जो इतने वर्षो से छुपाया जा रहा था | यही है सच की नीवं, अर्थात सच जानते ही उसे अपने विचारो का आधार बना लिया, जो बेहद ही जरुरी है |

आज अधिकतर लोग सच सुनते तो है मगर समझते नहीं है, उसे अपने विचारो की नीवं नहीं बनाते | उनके अपने सामाजिक तोर पर इंसानी दिमाग की उपज के एक अलग ही विचार है, जो अंदर से खोखले है, बिखरे हुए है जो केवल दिखावा करना जानते है, उन्हें सच तक जाना ही नहीं है और यही उनके विचरो के विकास में बाधा डालते है |

राजा का पुत्र कोई और नहीं बल्कि "महात्मा बुद्ध" थे | जिनका असली नाम "सिद्धार्थ गौतम" था | जिन्हें आज पूरी दुनिया मानती है, उनके कहे गए एक-एक शब्द की गहराई समझ कर चकित हो उठती है | यहीं सच की नीवं का असर दीखता है की वो कितनी ताकतवर और बलशाली है |

0 comments:

Post a Comment